मुश्किल से बहते
ये ज़िंदगी के पहरे
ये सागर की लहरें
में उलझे हैं सारे
ना मिलते किनारे
ना मिलते किनारे
ये जीना या मरना
शौकों के सहारे
मैं कहता हूँ खुद से
के भागे कहाँ तुम
यूँ गलियों में घूमे
के घर है कहाँ गुम
ना मिलते किनारे
ना मिलते किनारे
ये जीना या मरना
शौकों के सहारे
दिलों में जो शोले
भड़कते दहकते
जला ना तुम्हें दें
क़यामत के शोले
के मतला ना कोई
है इस ज़िंदगी का
तो जियो हर इक पल
के कल ना किसी का
ना कोई किनारे
ना कोई समंदर
ठहर जा वहीं तू
जी ले ये मंज़र